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एक इंजीनियर जो बाघों को बचाने की मुहिम में जुटा है...

शिव चालीसा पढ़ने के फायदे2023-09-18 20:02:33【आज का ताजा समाचार】0人已围观

简介ऐसा चाहते तो हम सभी हैं कि पर्यावरण और इंसान के बीच सामंजस्य बना रहे, लेकिन जहां एक्शन की बात आती है

ऐसा चाहते तो हम सभी हैं कि पर्यावरण और इंसान के बीच सामंजस्य बना रहे,एकइंजीनियरजोबाघोंकोबचानेकीमुहिममेंजुटाहै लेकिन जहां एक्शन की बात आती है वहां हम हमेशा गलतियां करते हैं. हम प्रकृति से कुछ इस तरह खिलवाड़ कर रहे हैं कि प्रकृति धीरे-धीरे अपनी रंगत खोती जा रही है. हम धीरे-धीरे दूसरे जानवरों के घरों में दाखिल होते चले जा रहे हैं. जिससे उनके अस्तित्व पर ही खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. उनमें से अव्वल हैं हमारे देश के राष्ट्रीय पशु बाघ. लेकिन इन तमाम बुरी खबरों और झंझावतों के बीच किशोर रेठे जैसे लोग भी हैं जो सॉप्टवेयर इंजीनियरिंग की मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ कर बाघों के संरक्षण में लगे हैं.वे महज 18-19 साल के थे और नेशनल कंजरवेशन सोसाइटी का हिस्सा बन चुके थे. यह सोसाइटी उन दिनों बाघों के संरक्षण के लिए प्रयासरत थी. उन्हें काम करते-करते इस बात का तो पता चल ही गया कि बाघों के संरक्षण के लिए जंगल के भीतर और उसके आस-पास रहने वाले लोगों के बीच ही रहना होगा. इसके लिए उन्होंने सशक्त संगठन की भी जरूरत महसूस की.किशोर बताते हैं कि सतपुड़ा का इलाका 25 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. इस पूरे क्षेत्र में एक साथ अंदर तक नहीं पहुंचा जा सकता हैं, क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में कई नेशनल पार्क और सेंचुरी हैं. साथ ही कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं, जो कि तो नहीं हैं लेकिन वहाँ पर बाघ रहते हैं. वे अपनी टीम के साथ इन क्षेत्रों में काम करने लगे, जहां बाघ अब भी रहते हैं. उसके बाद उन्होंने बफर एरिया के गांवों में काम करने की सोची. उसके बाद उनका सोचना था कि फंड बचने पर वे टाइगर रिजर्व और जंगल कोरिडोर के काम को अंजाम देंगे.सतपुड़ा फाउंडेशन’ पिछले 15 सालों के दौरान मंगला जिले में पड़ने वाला कान्हा रिजर्व पार्क के हिस्से, मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के पेंच नेशनल पार्क, चंद्रपुर में पड़ने वाले ताड़ोबा नेशनल पार्क और महाराष्ट्र के में काम कर रहे हैं. यहां काम करने वाली इनकी कोर टीम ने अपना एक मजबूत आधारभूत ढांचा तैयार किया है. यहां 115 गांवों तक इनका नेटवर्क फैला हुआ है.इसमें गांव में रहने वाली महिलाएं, युवा और बच्चे इनके फाउंडेशन से जुड़े हैं. किशोर का कहना है इस काम में परेशानियां बहुत आती हैं, बावजूद इन 15 सालों में यहाँ पर बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.सतपुड़ा फॉउंडेशन’ बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी काम कर रहा है. इनका कहना है जिन 115 गांवों में ये लोग काम कर रहे हैं वहां पर लगभग हर बच्चा स्कूल जाता है. शिक्षा के जरिए बच्चों को बताते हैं कि लोगों के लिये जंगल और वन्य जीव क्यों जरूरी हैं. ये बच्चों को बताते हैं कि अगर फसलों को नष्ट कर देते हैं तो ऐसे में अगर बाघ होगा तो ये जानवर अपने आप खत्म हो जाएंगे क्योंकि ये जानवर ही बाघों का भोजन हैं. किशोर का मानना है कि ये बात अगर वो सीधे उनके माता पिता से कहते हैं तो वे उनकी बात नहीं मानते लेकिन बच्चों की बात को वे लोग जल्दी समझते हैं.

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